Sunday, 16 April 2017

मिट्टी के बर्तन और कुम्हार

                                                            कुम्भार द्वारा बनाये गए बर्तनो का स्टॉक

मिट्टी के बर्तनों का इतिहास हजारों साल पुराना है आज भी हमारे खोजकर्ताओं या इतिहासकारों को खुदाई या खोज में मिट्टी के बर्तन प्राप्त होते हैं या  दीवारों पर उनके उल्लेख मिलते हैं मिट्टी के बने बर्तनों का प्रयोग प्राचीन समय से होता रहा है आज इनकी उपयोगिता कम हुई है क्योंकि आज के आधुनिक दौर में प्लास्टिक स्टील आदि के बर्तनों का उपयोग ज्यादा होने लगा है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज ही इनका उपयोग ज्यादातर किया जाता है । शहरों में भी कुछ जगहों पर पेयजल रोड के किनारे आज भी मिट्टी के घड़ो का प्रयोग किया जाता है मिट्टी के बने गुल्लकों का भी उपयोग कम हो गया है क्योंकि गुल्लक भी नए जमाने के आ गए हैं लेकिन आज भी मिट्टी के गुल्लक ग्रामीण क्षेत्रों में अपना दबदबा बनाए हुए बनाए हुए हैं शहरों में आज भी चाय कुल्हड़ में कई जगह मिलती है जिसका स्वाद ही अलग होता है ऑनलाइन भी मिट्टी के बर्तन मिलते हैं लेकिन इनकी बिक्री उतनी ज्यादा नहीं है मिट्टी के बर्तन कई तरह के मिलते हैं जिनमें सिरेमिक क्ले क्रीमवियर और टेराकोटा के बने हुए बर्तन मिल जाएंगे उनकी अलग-अलग रेंज है आप अपनी जरूरत के हिसाब से इनका चुनाव कर सकते हैं । मिट्टी के बने सामानों बर्तनों का अपना महत्व है मिट्टी के बर्तनों के पकाए जाने वाले खाने पानी पीने से कई तरह की सूक्ष्म शारीरिक बीमारियां नष्ट हो जाती है। मिट्टी के बर्तनों का उपयोग धीरे धीरे कम हो गया और यह निरंतर कम होता जा रहा है लेकिन मिट्टी के बर्तनों का अपना एक अलग महत्व है इसके कई फायदे हैं ।
अब बात आती है मिट्टी के बर्तन कैसे बनते हैं यह कौन बनाता है मिट्टी के बर्तनों का बनाने का कार्य कुम्हार जाति के लोग करते हैं यह जात संपूर्ण भारत में हिंदू और मुस्लिम धर्म संप्रदायों में पाई जाती है कुमार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है जहां कुंभ मतलब घड़ा और कार मतलब कारीगर या घड़ों के कारीगर । किस जात के लोगों का विश्वास है कि उनके आदि पुरुष महान आगस्ते हैं और यह भी समझा जाता है कि यंत्रों में कुम्हार के चाक का अविष्कार सबसे पहले हुआ कुम्हार जाति का इतिहास बहुत पुराना है मिट्टी के बर्तनों के बनाने की आधुनिक मशीने बाजार में मौजूद है यही कारण है कि कुम्हार के द्वारा हाथ से बनाए गए बर्तनों की कला धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है लेकिन कुछ जगहों पर आज भी कुम्हार हाथ से मिट्टी के बर्तन चाक के द्वारा बनाते हैं बाराबंकी के दरियाबाद के कुम्हार भी आज भी हाथ से वह पुरानी विधि से मिट्टी के बर्तन बनाते हैं ।

         मिट्टी लाई जाने के लिए प्रयोग की जाने वाली ठेलिया
  तालाब से मिट्टी के लिए इसका उपयोग किया जाता है इसको ठेलिया भी बोला जाता है


              बर्तन बनाने में उपयोग की जाने वाली मिट्टी

कच्चे माल के रूप में उपयोग की जाने वाली मिट्टी में तालाब के किनारों पर स्थित दलदली भूमि से प्राप्त की
                                   वसुरी
गीली मिट्टी को काटने के लिए वसुरी का उपयोग किया जाता है
                                     चाक
मिट्टी के बर्तनों का संपूर्ण कार्य चाक पर किया जाता है चाक पर गुथी हुई गीली मिट्टी से विभिन्न आकृतियों से पात्र बनते हैं चार को तेजी से गोल-गोल घुमाया जाता है फिर उस पर हाथ के द्वारा गीली मिट्टी को आकार दिया जाता है
                                    चौपत
चौपत का प्रयोग चाक के नीचे होता है इसकी सहायता से चाक घुमाया जाता है या घूमता है चाक चौपत के ऊपर रखा जाता है
             
कच्ची गीली मिट्टी द्वारा बनाये गए बर्तन

चाक पर मिट्टी के बर्तनो को आकार व छोटी डिज़ाइन बनाता हुआ शाहिद अली ।
                                   साँचा
सांचा का कार्य गीले बर्तनों पर बड़ी डिजाइन बनाने के लिए किया जाता है
                                     कंडे
बाराबंकी के दरियाबाद की कुम्हार मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए गोबर के बने खंडों का प्रयोग करते हैं
                                      आंवा
जहां पर बर्तन पकाने की प्रक्रिया होती है उस जगह को आंवा बोला जाता है
                               टूटे हुए बर्तन
बर्तनों को पकाने में कुछ बर्तन फूट जाते हैं
                                    पीड़ी
पीड़ी का प्रयोग कच्चे बर्तन में मिट्टी को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है ।


बर्तनों को पकाने के बाद इन पर रंगाई की जाती है तथा रंगो के माध्यम से चित्रकारी की जाती है उसके बाद बिक्री के लिए तैयार किए जाते हैं
                       मिट्टी के बर्तन बेचता रहीम


बाराबंकी के दरियाबाद इलाका जो कभी अंग्रेजो के ज़माने में जिला मुख्यालय हुआ करता था वहा के  कुम्हार शाहिद अली ने बताया उनकी रोजमर्रा कि जिंदगी इन्हीं  बर्तनों को बेचते बेचते बीत जाती है उन्होंने बताया कि त्योहारों में उनकी बिक्री में इजाफा हो जाता है लेकिन इतना नहीं कि उनका परिवार 1 महीने अच्छे से गुजारा कर सके शाहिद अली ने बताया कि इन बर्तनों से ही परिवार नहीं चल पा रहा है जिसके कारण उन्हें कहीं मजदूरी करने के लिए जाना पड़ता है और बर्तन बेचने के लिए अपने बेटे रहीम को इन बर्तनों को बेचने के लिए बैठाना पड़ता है हालांकि शाहिद अली अपने बेटे को अच्छे स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं लेकिन इनकी इतनी आमदनी नहीं हो पाती है कि वह उस का दाखिला उन स्कूलों में करा सकें उन्हें डर है कि उनके बेटे का भविष्य चाक की तरह घूमता ना रह जाए जिसकी जिंदगी इन्हीं कच्ची मिट्टी के बर्तन का आकार ले ले हलाकि सरकार दावा करती है कि गांव-गांव बिजली पहुंचाकर इलेक्ट्रिक चौक से इन कुम्हारों को फायदा पहुंचा है लेकिन हकीकत कुछ और है वहां पर जाने पर पता चला कि बिजली की तो छोड़िए वहां बिजली के खंभे भी नहीं है सरकार जिन दावों को रखती है वह उसमें फेल है। शाहिद अली चाहते है कि सरकार हाथ से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को प्रोत्साहन करे उन्हें योजनाओ के द्वारा लाभ दे । जिससे उनके परिवार और बच्चो का भविष्य उज्जवल हो सके ।











































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3 comments:

  1. Soch achi hai aapki suraj verma ji. May this thinking help the potters. Nice to here clay pots story.

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  2. Mitti ke bartan ka pani accha lagta hair

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